शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

[19]

युवक ने बचपन से अब तक की सारी कहानी युवराज को सुना डाली कि किस तरह युवक अपने पिता के साथ बचपन में युवराज के पिता की हवेली में आया करता था और बाद में वहीं काम करने लगा। युवक की सेवा और स्वामीभक्ति से प्रसन्न होकर युवराज के पिता ने उसे इस शाहीमहल में भेजने का फ़ैसला किया।
दुर्भाग्य से युवक के पिता का देहांत हो जाने के कारण युवक को छोटी उम्र में ही अब किसी बड़े रोज़गार की ज़रूरत थी ताकि वह अपनी माता और छोटे भाई-बहनों का लालन -पालन कर सके। युवराज के पिता ने भारी इनाम-इकराम और धनराशि के साथ युवक को यहाँ भेजा तो उसने इस अवसर को अपनी सेवा और स्वामीभक्ति का फल ही समझा,और उसकी माता ने भी इसे युवराज के पिता की कृतज्ञता मान कर लड़के को महल में आने की सहमति दी। किन्तु बिना बाप के उस लड़के को जब यहाँ उसका काम समझाया गया तो उसका माथा चकराया।
उसकी स्थिति ऐसी थी कि वह न तो किसी से कुछ कह सकता था और न ही अपने घर वापस लौट सकता था। उसे यहाँ छोड़ने स्वयं युवराज के पिता, छोटे ठाकुर आये थे।
उससे कहा गया कि उसे यहां रह कर राजकुमारी की देखभाल करनी है। हर पल, हर जगह उसे राजकुमारी के साथ रहने की हिदायत भी दी गयी।
आरम्भ में वह बहुत खुश हुआ किन्तु तब उसे बड़ा धक्का लगा जब खुद छोटे ठाकुर ने उसे उनके इरादे के बारे में बताया। वे चाहते थे कि राजकुमारी न तो ठीक से पढ़-लिख सके और न ही किसी बात को समझ पाने के योग्य हो सके, एक तरह से उसका जीवन नष्ट करने का काम ही उस युवक को करना था। भला एक भोले-भाले नवयुवक के लिए इस से ज़्यादा घृणित कार्य और क्या हो सकता था कि उसे एक निर्दोष सुंदरी के तन-मन को क्षत-विक्षत करने के लिए कहा जाये।                   

बुधवार, 5 जुलाई 2017

[18]

युवक को ये मालूम था कि युवराज वस्तुतः कन्या ही है, इसलिए उसके पुरुष वेश में होने के बावजूद युवक बैठने में संकोच कर रहा था, किन्तु युवराज का संकेत पाकर युवक कक्ष की सज्जा को देखता हुआ एक ओर कुछ दूरी बना कर बैठ गया।
युवक ने बिना विलम्ब किये वह पत्र युवराज को सौंप दिया जो उसे युवराज के पिता ने दिया था। युवराज ने सरसरी निगाह से उसे पढ़ डाला। अब चौंकने की बारी युवराज की थी।पत्र पढ़ते ही युवराज को यह पता चला कि यह युवक वही था जिसे युवराज के पिता ने कभी राजकुमारी की देखभाल के नाम पर इस महल में भेजा था, और राजकुमारी के गर्भ में इसी का वीर्य आज सबके संकट का कारण बना हुआ था।
युवराज का मस्तिष्क थोड़ी देर के लिए सुन्न हो गया, उसे ये भी भान न रहा कि पिता का भेजा हुआ उनका विश्वासपात्र ये युवक युवराज का हितचिंतक है और संकट की इस घड़ी में उसी की मदद के लिए भेजा गया है। इतना ही नहीं, बल्कि वर्षों से वह युवराज के पिता के साथ मिल कर युवराज को राजपाट दिलाने की षड्यन्त्रभरी मुहिम में शामिल है।
पत्र पढ़ लेने के बाद जहाँ एक ओर विचित्र आत्मीय दृष्टि से युवक युवराज की ओर  देख रहा था वहीं दूसरी ओर युवराज की नज़रों में शोले से दहकने लगे। युवराज ने आव देखा न ताव,पलट कर एक भरपूर तमाचा युवक के गाल पर रसीद कर दिया।  युवक पीड़ा से ज़्यादा अपमान से तिलमिला कर रह गया।
युवक कई महीनों तक इसी महल में राजकुमारी के साथ रह चुका था, किन्तु उस समय वह वेश बदल कर एक शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में रहा था, इसी से युवराज या अन्य कोई कर्मचारी महल में उसे पहचान नहीं सके थे। फिर भी इस तरह हुए अपमान की उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी, अतः युवराज के इस रौद्र व्यवहार से वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। उसे अच्छी तरह मालूम था कि युवराज के एक संकेत पर उसे शाही कैदखाने में डाला जा सकता था।
उसने तत्काल झुक कर युवराज के पैर पकड़ लिए। वह युवराज के पिता का विश्वासपात्र सही, किन्तु युवराज और राजकुमारी के लिए तो घोर अपराधी ही था।
युवराज ने तुरंत ही अपने क्रोध को वश में कर लिया, अब वे दोनों शांति से बैठे धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे।                  

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

[17]

युवराज के सामने अब दोहरी चुनौती थी।  तेज़ी से भागते बहुत थोड़े से समय में ही उसे सार्वजनिक सभा में राजकुमारी को झूठा सिद्ध करके अपना भविष्य बचाना था और साथ ही इस पहेली का कोई स्थायी हल तलाश करना था कि एक विशाल साम्राज्य के शाही महल में एक स्त्री होते हुए भी पुरुष के रूप में कैसे रहते रहा जाये। युवराज के पिता ने सत्ता के लालच में अकारण ही एक बड़ा षड़यंत्र रच कर ये गुत्थी उलझा दी थी।
किन्तु किसी सौगात की तरह, गहराती रात के उस नीरव सन्नाटे में युवराज को अपनी उलझन का एक सिरा अचानक मिल गया।
युवराज की बेचैनी करवटें बदल ही रही थी कि सहसा कक्ष के द्वार पर हल्की दस्तक हुई। द्वारपाल को युवराज ने पहले ही सोने के लिए भेज दिया था। युवराज ने अचंभित होते हुए उठकर स्वयं दरवाज़ा खोल दिया। सामने एक बेहद सुदर्शन आकर्षक युवक नज़रें नीची किये खड़ा था।
और कोई समय होता तो महल के प्रहरी इस तरह युवराज के शयनकक्ष तक निर्बाध किसी युवक को न आने देते। स्वयं युवराज का हाथ भी तत्काल सतर्कता से कटार पर चला जाता। किन्तु आने वाले युवक ने एक पल की भी देर किये बिना सोने का वह छोटा सा ताबीज़ युवराज के सामने कर दिया,जिसे देखते ही पहचान कर युवराज ने तत्काल रास्ता देते हुए युवक को भीतर आ जाने का संकेत किया।
ताबीज़ युवराज के पिता द्वारा दिया गया था,जिसका तात्पर्य ये था कि युवक को पिता द्वारा भेजा गया है।युवराज ने चैन की साँस ली और युवक को बैठ जाने का इशारा किया।
             

[19]

युवक ने बचपन से अब तक की सारी कहानी युवराज को सुना डाली कि किस तरह युवक अपने पिता के साथ बचपन में युवराज के पिता की हवेली में आया करता था औ...