रात का समय था। जयपुर नगर के उस उस पुराने भव्य महल में ख़ामोशी का साम्राज्य था। साल बीतने को था। दूर महल के ऊँचे बुर्ज़ पर इकलौते झरोखे में रोशनी दिखाई देती थी। वहां पर एक गुप्त बैठक चल रही थी। बुजुर्ग किन्तु स्वस्थ ठाकुर कलात्मक कुर्सी पर विराजमान थे। वे मंथर पर गूंजती आवाज़ में कह रहे थे-
-"बेटी ... ?"
उनकी बात का जवाब एक सुन्दर सुकुमार युवक ने सिर झुका कर दिया।
-"कहिये पिताजी ?"
-"बेटी,अब समय आ गया है कि जिस रहस्य ने तुम्हें अब तक परेशान किये रखा,अब उसका पर्दाफ़ाश हो। मैं तुम्हारे जन्म से ही रखे गए इस राज़ को अब खोलना चाहता हूँ। मेरे बड़े भाई, तुम्हारे तायाजी,जैसा तुम्हें पता है कि इस राज्य के महाराजाधिराज हैं। हमारे पिता ने मरते समय कहा था कि यदि इनके कोई पुत्र नहीं हुआ तो राज्य का अगला उत्तराधिकारी मेरे परिवार से होगा, बशर्ते मेरा कोई पुत्र हो।"
-"लेकिन पिताजी,ये बात बाबा ने क्या सोच कर कह दी, क्या उन्हें तायाजी के पुत्र न होने का अंदेशा पहले से ही था?"
ठाकुर ने चौंक कर बेटी की आँखों में झाँका,फिर संयत होते हुए बोले-"ये एक अलग राज़ है जो सही वक़्त पर तुम पर जाहिर होगा।"
-"बेटी ... ?"
उनकी बात का जवाब एक सुन्दर सुकुमार युवक ने सिर झुका कर दिया।
-"कहिये पिताजी ?"
-"बेटी,अब समय आ गया है कि जिस रहस्य ने तुम्हें अब तक परेशान किये रखा,अब उसका पर्दाफ़ाश हो। मैं तुम्हारे जन्म से ही रखे गए इस राज़ को अब खोलना चाहता हूँ। मेरे बड़े भाई, तुम्हारे तायाजी,जैसा तुम्हें पता है कि इस राज्य के महाराजाधिराज हैं। हमारे पिता ने मरते समय कहा था कि यदि इनके कोई पुत्र नहीं हुआ तो राज्य का अगला उत्तराधिकारी मेरे परिवार से होगा, बशर्ते मेरा कोई पुत्र हो।"
-"लेकिन पिताजी,ये बात बाबा ने क्या सोच कर कह दी, क्या उन्हें तायाजी के पुत्र न होने का अंदेशा पहले से ही था?"
ठाकुर ने चौंक कर बेटी की आँखों में झाँका,फिर संयत होते हुए बोले-"ये एक अलग राज़ है जो सही वक़्त पर तुम पर जाहिर होगा।"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें