मंगलवार, 4 जुलाई 2017

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युवराज के सामने अब दोहरी चुनौती थी।  तेज़ी से भागते बहुत थोड़े से समय में ही उसे सार्वजनिक सभा में राजकुमारी को झूठा सिद्ध करके अपना भविष्य बचाना था और साथ ही इस पहेली का कोई स्थायी हल तलाश करना था कि एक विशाल साम्राज्य के शाही महल में एक स्त्री होते हुए भी पुरुष के रूप में कैसे रहते रहा जाये। युवराज के पिता ने सत्ता के लालच में अकारण ही एक बड़ा षड़यंत्र रच कर ये गुत्थी उलझा दी थी।
किन्तु किसी सौगात की तरह, गहराती रात के उस नीरव सन्नाटे में युवराज को अपनी उलझन का एक सिरा अचानक मिल गया।
युवराज की बेचैनी करवटें बदल ही रही थी कि सहसा कक्ष के द्वार पर हल्की दस्तक हुई। द्वारपाल को युवराज ने पहले ही सोने के लिए भेज दिया था। युवराज ने अचंभित होते हुए उठकर स्वयं दरवाज़ा खोल दिया। सामने एक बेहद सुदर्शन आकर्षक युवक नज़रें नीची किये खड़ा था।
और कोई समय होता तो महल के प्रहरी इस तरह युवराज के शयनकक्ष तक निर्बाध किसी युवक को न आने देते। स्वयं युवराज का हाथ भी तत्काल सतर्कता से कटार पर चला जाता। किन्तु आने वाले युवक ने एक पल की भी देर किये बिना सोने का वह छोटा सा ताबीज़ युवराज के सामने कर दिया,जिसे देखते ही पहचान कर युवराज ने तत्काल रास्ता देते हुए युवक को भीतर आ जाने का संकेत किया।
ताबीज़ युवराज के पिता द्वारा दिया गया था,जिसका तात्पर्य ये था कि युवक को पिता द्वारा भेजा गया है।युवराज ने चैन की साँस ली और युवक को बैठ जाने का इशारा किया।
             

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