बुधवार, 5 जुलाई 2017

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युवक को ये मालूम था कि युवराज वस्तुतः कन्या ही है, इसलिए उसके पुरुष वेश में होने के बावजूद युवक बैठने में संकोच कर रहा था, किन्तु युवराज का संकेत पाकर युवक कक्ष की सज्जा को देखता हुआ एक ओर कुछ दूरी बना कर बैठ गया।
युवक ने बिना विलम्ब किये वह पत्र युवराज को सौंप दिया जो उसे युवराज के पिता ने दिया था। युवराज ने सरसरी निगाह से उसे पढ़ डाला। अब चौंकने की बारी युवराज की थी।पत्र पढ़ते ही युवराज को यह पता चला कि यह युवक वही था जिसे युवराज के पिता ने कभी राजकुमारी की देखभाल के नाम पर इस महल में भेजा था, और राजकुमारी के गर्भ में इसी का वीर्य आज सबके संकट का कारण बना हुआ था।
युवराज का मस्तिष्क थोड़ी देर के लिए सुन्न हो गया, उसे ये भी भान न रहा कि पिता का भेजा हुआ उनका विश्वासपात्र ये युवक युवराज का हितचिंतक है और संकट की इस घड़ी में उसी की मदद के लिए भेजा गया है। इतना ही नहीं, बल्कि वर्षों से वह युवराज के पिता के साथ मिल कर युवराज को राजपाट दिलाने की षड्यन्त्रभरी मुहिम में शामिल है।
पत्र पढ़ लेने के बाद जहाँ एक ओर विचित्र आत्मीय दृष्टि से युवक युवराज की ओर  देख रहा था वहीं दूसरी ओर युवराज की नज़रों में शोले से दहकने लगे। युवराज ने आव देखा न ताव,पलट कर एक भरपूर तमाचा युवक के गाल पर रसीद कर दिया।  युवक पीड़ा से ज़्यादा अपमान से तिलमिला कर रह गया।
युवक कई महीनों तक इसी महल में राजकुमारी के साथ रह चुका था, किन्तु उस समय वह वेश बदल कर एक शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में रहा था, इसी से युवराज या अन्य कोई कर्मचारी महल में उसे पहचान नहीं सके थे। फिर भी इस तरह हुए अपमान की उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी, अतः युवराज के इस रौद्र व्यवहार से वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। उसे अच्छी तरह मालूम था कि युवराज के एक संकेत पर उसे शाही कैदखाने में डाला जा सकता था।
उसने तत्काल झुक कर युवराज के पैर पकड़ लिए। वह युवराज के पिता का विश्वासपात्र सही, किन्तु युवराज और राजकुमारी के लिए तो घोर अपराधी ही था।
युवराज ने तुरंत ही अपने क्रोध को वश में कर लिया, अब वे दोनों शांति से बैठे धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे।                  

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