शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

[5]

पिता के तेवर देख कर पुत्री अवाक रह गयी। पिता ने इस पल की अपने प्रति पक्षधरता को फ़ौरन भाँपा और स्वर बदल कर कहा-"इन बातों को यहीं ख़त्म करो बेटी। याद रखो, ऐसा करके तुम्हें जीवन भर दुःख और आँसू के सिवा और कुछ नहीं मिलेगा।"
पुत्री से भी अपने पिता की निराश आँखें देखी नहीं गयीं और वह उनका कहा मान कर रात में ही अपने शुभचिंतकों की फौज़ लेकर उनके उद्देश्य को पूरा करने के लिए निकल पड़ी।
बूढ़ा पिता पुत्री को षड़यंत्र के रास्ते पर भेज कर कुछ पल सोचता रहा, फिर पास ही बैठी अपनी पत्नी से मुखातिब हुआ, बोला -"मैंने पिछले कुछ महीनों से अपने विश्वासपात्र एक युवक को भाई के महल में उसकी पुत्री की देखभाल के नाम पर लगा रखा है जो उसे पढ़ाई-समझ-चतुराई जैसे किसी भी काम में दक्ष नहीं होने देगा, और उसे झूठी प्रेम-प्रीत में उलझा कर उसका ध्यान बँटाये रखेगा। ऐसा न करूँ तो एक दिन हमारा सपना टूट सकता था। पर अब उसके वहां होने से हमारा काम बिलकुल आसान हो जायेगा। कोई हमारी बेटी को रानी बनने से नहीं रोक सकेगा।"
आशंकित होकर पत्नी ने कहा-"मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा है, ईश्वर सब भला करे।"
-"धीरज रखो, सिंहासन यूँ ही नहीं मिल जाते।"                  

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

[4]

ठाकुर ने कहना जारी रखा-"बेटी ध्यान से सुनो, तुम्हें मेरी एक-एक बात का सावधानी से ध्यान रखना है। हमारे राज्य में वर्षों से ये मान्यता रही है कि यदि कभी कोई औरत गद्दी पर बैठी तो सिंहासन पर बैठते ही उसका देहांत हो जायेगा।"
- "आपको यक़ीन है ऐसी मान्यता पर ?" युवक बनी युवती ने व्यंग्य से कहा।
-"सवाल मेरे यक़ीन का नहीं है, सवाल ये है कि हमें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना है बेटी, तुम्हें बुज़ुर्गों की मान्यताओं के परंपरागत सम्मान का भी ख्याल रखना है। यही नहीं,बल्कि जब राज्य के भावी शासक के रूप में तुम्हारे नाम का ऐलान हो, तब भी तुम्हें नीचे, सिंहासन के चरणों में ही बैठना है। ऐसा नहीं है कि तुम्हारा रहस्य वहां किसी को पता चलेगा, किन्तु फिर भी अक्लमंदी इसी में है कि पुरानी मान्यता की क़द्र करते हुए अपने जीवन का बचाव किया जाये।"
-"ओह पिताजी, तो क्या मेरा पूरा जीवन झूठ पर ही टिकेगा ? मैं अपनी निर्दोष चचेरी छोटी बहन को धोखा दूँगी? मुझसे ये नहीं होगा, मुझे बख्शिये।" युवक की आवाज़ की मायूसी अब उसका मौलिक स्वर बन कर उभरने लगी थी।
-"क्या बकवास है? क्या मेरी जीवन भर की तपस्या का यही फल मुझे मिलेगा ? सारी उमर अपने दिमाग से योजना बनाते हुए मैंने ये सब किया, ताकि मैं अपने मरते हुए पिता के वचनों का पालन करते हुए अपने परिवार को भी एक दिन उनका उत्तराधिकारी सिद्ध कर सकूँ।"                

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

[3]

-"अगली सुबह पूरे नगर की प्रजा इस खबर से झूम उठी कि मेरे यहाँ पुत्र का जन्म हुआ है, जो आगे जाकर उनका राजा बनेगा। तुम्हें पालने के लिए तुम्हारी सगी मौसी को बुलाया गया ताकि इस रहस्य को किसी भी कीमत पर उजागर होने से रोका जा सके।"
युवक के वेश में खड़ी सुकुमार कन्या के माथे पर पसीना चुहचुहा आया। वह आँखों की पुतलियों को रोके तन्मयता से अपने पिता को सुन रही थी।
-"जब तुम दस साल की हुईं तब तुम्हारे तायाजी के यहाँ पुत्री का जन्म हुआ। मुझे शंका के साथ-साथ दुःख भी हुआ। मैं मनाता रहा कि किसी तरह बीमारी आदि में पड़कर इस कन्या का जीवन न बचे। पर मुझे निराशा ही हाथ लगी।  वह सुरक्षित रही और राज्य के राजमुकुट के प्रबल दावेदार के रूप में बढ़ती रही। पर मैं भी अपने अहंकार में चूर होकर आश्वस्त रहा कि पुत्र तो मेरे ही घर में है, जो बड़ा होकर राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा।  .... इसलिए मेरी बच्ची, मैंने न केवल तुम्हारा नाम ही राजकुमार रखा बल्कि तुम्हें मन की अंतिम परत से राजकुमार ही समझा। तुम्हें पढ़ाने के बहाने इतनी दूर भेज दिया गया।"
-"लेकिन पिताजी ..."
-"अब मेरा भाई, तुम्हारा ताया बूढ़ा हो रहा है और उस से राज्य के मसले नहीं सँभलते। अतः वह चाहता है कि तुम्हें अभी से अपने पास बुला ले और राज्य के भावी शासक के रूप में तुम उसके साथ कामकाज देखना शुरू करो।"
-"किन्तु ...पिताजी ..."
-"तुम्हारे सेवक तैयार हैं, और तुम्हें अपने सुनहरे भविष्य के लिए उनके साथ प्रस्थान करना है।"                      

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

[2]

और सुनो, उन्होंने ये भी कहा था कि यदि दोनों ही घरों में कोई पुत्र न होकर केवल पुत्रियां ही होती हैं तो तुम्हारे तायाजी की बेटी ही रानी बनेगी, बशर्ते वह काबिल हो। किन्तु यदि वह काबिल न हो तो फिर मेरी पुत्री को शासक बनाया जाये। यहाँ भी शर्त यही थी कि वह होशियार और समझदार हो।
-"लेकिन पिताजी, ये "क़ाबलियत" किस नज़र से आंके जाने की बात कही थी बाबासाहेब ने?"
-"नादान मत बनो बेटी, क़ाबलियत किसी की नज़र से नहीं होती, काबिल माने काबिल, बस ! अतः मैं और तुम्हारी माँ सारी उम्र बेटे के लिए मन्नतें मांगते रहे,पर हमारी प्रार्थना निष्फल गयी, हमारे यहाँ तुम्हारा जन्म हुआ।"ठाकुर ने लरज़ती आवाज़ में कहा।
-"आपको निराशा हुई होगी पिताजी?"
-"हाँ , मुझे निराशा हुई,मुझे लगा कि विधाता का दिया हुआ सौभाग्य का एक अवसर मुझसे छिन गया। हमारा सपना टूट गया। लेकिन मैंने आसानी से हार नहीं मानी, मैं लगातार कुछ करने के लिए सोचता रहा।"
-"क्या? क्या पिताजी??"
-"भाई के विवाह को भी पांच साल से ज़्यादा हो गए थे पर उसके यहाँ कोई औलाद नहीं हुई थी।तब मेरे मन ने मुझसे कहा, रुको, अभी हमने सब कुछ नहीं खोया है। मेरे दिमाग ने सोचना शुरू किया।"
कुछ देर की चुप्पी के बाद ठाकुर ने कहना जारी रखा-"तुम्हारा जन्म आधी रात में हुआ था। केवल एक दाई और छह दासियों को ही पता था कि तुम लड़की हो।  मैंने एक घंटे के भीतर ही सबको मौत के घाट उतार दिया।"
-"पिताजी !".... युवक की भरपूर चीख निकली।
ठाकुर लाल आँखों से किसी मायावी दैत्य से नज़र आ रहे थे।              
      

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

सुनो रे !

रात का समय था। जयपुर नगर के उस उस पुराने भव्य महल में ख़ामोशी का साम्राज्य था। साल बीतने को था। दूर महल के ऊँचे बुर्ज़ पर इकलौते झरोखे में रोशनी दिखाई देती थी। वहां पर एक गुप्त बैठक चल रही थी। बुजुर्ग किन्तु स्वस्थ ठाकुर कलात्मक कुर्सी पर विराजमान थे। वे मंथर पर गूंजती आवाज़ में कह रहे थे-
-"बेटी ... ?"
उनकी बात का जवाब एक सुन्दर सुकुमार युवक ने सिर झुका कर दिया।
-"कहिये पिताजी ?"
-"बेटी,अब समय आ गया है कि जिस रहस्य ने तुम्हें अब तक परेशान किये रखा,अब उसका पर्दाफ़ाश हो। मैं तुम्हारे जन्म से ही रखे गए इस राज़ को अब खोलना चाहता हूँ। मेरे बड़े भाई, तुम्हारे तायाजी,जैसा तुम्हें पता है कि इस राज्य के महाराजाधिराज हैं। हमारे पिता ने मरते समय कहा था कि यदि इनके कोई पुत्र नहीं हुआ तो राज्य का अगला उत्तराधिकारी मेरे परिवार से होगा, बशर्ते मेरा कोई पुत्र हो।"
-"लेकिन पिताजी,ये बात बाबा ने क्या सोच कर कह दी, क्या उन्हें तायाजी के पुत्र न होने का अंदेशा पहले से ही था?"
ठाकुर ने चौंक कर बेटी की आँखों में झाँका,फिर संयत होते हुए बोले-"ये एक अलग राज़ है जो सही वक़्त पर तुम पर जाहिर होगा।"
            

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युवक ने बचपन से अब तक की सारी कहानी युवराज को सुना डाली कि किस तरह युवक अपने पिता के साथ बचपन में युवराज के पिता की हवेली में आया करता था औ...