बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

[4]

ठाकुर ने कहना जारी रखा-"बेटी ध्यान से सुनो, तुम्हें मेरी एक-एक बात का सावधानी से ध्यान रखना है। हमारे राज्य में वर्षों से ये मान्यता रही है कि यदि कभी कोई औरत गद्दी पर बैठी तो सिंहासन पर बैठते ही उसका देहांत हो जायेगा।"
- "आपको यक़ीन है ऐसी मान्यता पर ?" युवक बनी युवती ने व्यंग्य से कहा।
-"सवाल मेरे यक़ीन का नहीं है, सवाल ये है कि हमें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना है बेटी, तुम्हें बुज़ुर्गों की मान्यताओं के परंपरागत सम्मान का भी ख्याल रखना है। यही नहीं,बल्कि जब राज्य के भावी शासक के रूप में तुम्हारे नाम का ऐलान हो, तब भी तुम्हें नीचे, सिंहासन के चरणों में ही बैठना है। ऐसा नहीं है कि तुम्हारा रहस्य वहां किसी को पता चलेगा, किन्तु फिर भी अक्लमंदी इसी में है कि पुरानी मान्यता की क़द्र करते हुए अपने जीवन का बचाव किया जाये।"
-"ओह पिताजी, तो क्या मेरा पूरा जीवन झूठ पर ही टिकेगा ? मैं अपनी निर्दोष चचेरी छोटी बहन को धोखा दूँगी? मुझसे ये नहीं होगा, मुझे बख्शिये।" युवक की आवाज़ की मायूसी अब उसका मौलिक स्वर बन कर उभरने लगी थी।
-"क्या बकवास है? क्या मेरी जीवन भर की तपस्या का यही फल मुझे मिलेगा ? सारी उमर अपने दिमाग से योजना बनाते हुए मैंने ये सब किया, ताकि मैं अपने मरते हुए पिता के वचनों का पालन करते हुए अपने परिवार को भी एक दिन उनका उत्तराधिकारी सिद्ध कर सकूँ।"                

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

[19]

युवक ने बचपन से अब तक की सारी कहानी युवराज को सुना डाली कि किस तरह युवक अपने पिता के साथ बचपन में युवराज के पिता की हवेली में आया करता था औ...