सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

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-"अगली सुबह पूरे नगर की प्रजा इस खबर से झूम उठी कि मेरे यहाँ पुत्र का जन्म हुआ है, जो आगे जाकर उनका राजा बनेगा। तुम्हें पालने के लिए तुम्हारी सगी मौसी को बुलाया गया ताकि इस रहस्य को किसी भी कीमत पर उजागर होने से रोका जा सके।"
युवक के वेश में खड़ी सुकुमार कन्या के माथे पर पसीना चुहचुहा आया। वह आँखों की पुतलियों को रोके तन्मयता से अपने पिता को सुन रही थी।
-"जब तुम दस साल की हुईं तब तुम्हारे तायाजी के यहाँ पुत्री का जन्म हुआ। मुझे शंका के साथ-साथ दुःख भी हुआ। मैं मनाता रहा कि किसी तरह बीमारी आदि में पड़कर इस कन्या का जीवन न बचे। पर मुझे निराशा ही हाथ लगी।  वह सुरक्षित रही और राज्य के राजमुकुट के प्रबल दावेदार के रूप में बढ़ती रही। पर मैं भी अपने अहंकार में चूर होकर आश्वस्त रहा कि पुत्र तो मेरे ही घर में है, जो बड़ा होकर राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा।  .... इसलिए मेरी बच्ची, मैंने न केवल तुम्हारा नाम ही राजकुमार रखा बल्कि तुम्हें मन की अंतिम परत से राजकुमार ही समझा। तुम्हें पढ़ाने के बहाने इतनी दूर भेज दिया गया।"
-"लेकिन पिताजी ..."
-"अब मेरा भाई, तुम्हारा ताया बूढ़ा हो रहा है और उस से राज्य के मसले नहीं सँभलते। अतः वह चाहता है कि तुम्हें अभी से अपने पास बुला ले और राज्य के भावी शासक के रूप में तुम उसके साथ कामकाज देखना शुरू करो।"
-"किन्तु ...पिताजी ..."
-"तुम्हारे सेवक तैयार हैं, और तुम्हें अपने सुनहरे भविष्य के लिए उनके साथ प्रस्थान करना है।"                      

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