शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

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पिता के तेवर देख कर पुत्री अवाक रह गयी। पिता ने इस पल की अपने प्रति पक्षधरता को फ़ौरन भाँपा और स्वर बदल कर कहा-"इन बातों को यहीं ख़त्म करो बेटी। याद रखो, ऐसा करके तुम्हें जीवन भर दुःख और आँसू के सिवा और कुछ नहीं मिलेगा।"
पुत्री से भी अपने पिता की निराश आँखें देखी नहीं गयीं और वह उनका कहा मान कर रात में ही अपने शुभचिंतकों की फौज़ लेकर उनके उद्देश्य को पूरा करने के लिए निकल पड़ी।
बूढ़ा पिता पुत्री को षड़यंत्र के रास्ते पर भेज कर कुछ पल सोचता रहा, फिर पास ही बैठी अपनी पत्नी से मुखातिब हुआ, बोला -"मैंने पिछले कुछ महीनों से अपने विश्वासपात्र एक युवक को भाई के महल में उसकी पुत्री की देखभाल के नाम पर लगा रखा है जो उसे पढ़ाई-समझ-चतुराई जैसे किसी भी काम में दक्ष नहीं होने देगा, और उसे झूठी प्रेम-प्रीत में उलझा कर उसका ध्यान बँटाये रखेगा। ऐसा न करूँ तो एक दिन हमारा सपना टूट सकता था। पर अब उसके वहां होने से हमारा काम बिलकुल आसान हो जायेगा। कोई हमारी बेटी को रानी बनने से नहीं रोक सकेगा।"
आशंकित होकर पत्नी ने कहा-"मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा है, ईश्वर सब भला करे।"
-"धीरज रखो, सिंहासन यूँ ही नहीं मिल जाते।"                  

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