रविवार, 12 फ़रवरी 2017

[2]

और सुनो, उन्होंने ये भी कहा था कि यदि दोनों ही घरों में कोई पुत्र न होकर केवल पुत्रियां ही होती हैं तो तुम्हारे तायाजी की बेटी ही रानी बनेगी, बशर्ते वह काबिल हो। किन्तु यदि वह काबिल न हो तो फिर मेरी पुत्री को शासक बनाया जाये। यहाँ भी शर्त यही थी कि वह होशियार और समझदार हो।
-"लेकिन पिताजी, ये "क़ाबलियत" किस नज़र से आंके जाने की बात कही थी बाबासाहेब ने?"
-"नादान मत बनो बेटी, क़ाबलियत किसी की नज़र से नहीं होती, काबिल माने काबिल, बस ! अतः मैं और तुम्हारी माँ सारी उम्र बेटे के लिए मन्नतें मांगते रहे,पर हमारी प्रार्थना निष्फल गयी, हमारे यहाँ तुम्हारा जन्म हुआ।"ठाकुर ने लरज़ती आवाज़ में कहा।
-"आपको निराशा हुई होगी पिताजी?"
-"हाँ , मुझे निराशा हुई,मुझे लगा कि विधाता का दिया हुआ सौभाग्य का एक अवसर मुझसे छिन गया। हमारा सपना टूट गया। लेकिन मैंने आसानी से हार नहीं मानी, मैं लगातार कुछ करने के लिए सोचता रहा।"
-"क्या? क्या पिताजी??"
-"भाई के विवाह को भी पांच साल से ज़्यादा हो गए थे पर उसके यहाँ कोई औलाद नहीं हुई थी।तब मेरे मन ने मुझसे कहा, रुको, अभी हमने सब कुछ नहीं खोया है। मेरे दिमाग ने सोचना शुरू किया।"
कुछ देर की चुप्पी के बाद ठाकुर ने कहना जारी रखा-"तुम्हारा जन्म आधी रात में हुआ था। केवल एक दाई और छह दासियों को ही पता था कि तुम लड़की हो।  मैंने एक घंटे के भीतर ही सबको मौत के घाट उतार दिया।"
-"पिताजी !".... युवक की भरपूर चीख निकली।
ठाकुर लाल आँखों से किसी मायावी दैत्य से नज़र आ रहे थे।              
      

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