कुछ पल गुज़रे होंगे कि उधर राजकुमारी अपने कक्ष में हताश और निराश होकर रो रही थी, और इधर युवराज अपने कक्ष में मुंह लटका कर किंकर्तव्यविमूढ़ बैठा हुआ था। दोनों बुरी तरह उदास थे, मानो जीवन ही व्यर्थ हो गया हो।
कुछ संयत होकर राजकुमारी मानो अपने आप से ही कह उठी- ओह, एक पल को तो मैं समझी थी कि वो निष्ठुर पिघल रहा है। वो मुझसे प्यार स्वीकार करेगा,प्यार जतायेगा, पर उसने तो मेरे अभिसार को किसी श्वान की भांति झटक दिया, मैं नफ़रत करती हूँ उस से।
समय गुज़रता रहा। राजकन्या की ज़िन्दगी में एक गहरी उदासी फिर पसर गयी। अब युवराज और राजकुमारी कभी भी,कहीं भी साथ न देखे जाते। महाराज भी गहरे विषाद में डूब गए। लेकिन शासकीय मामलों में और भी गहराई से जुटे युवराज के चेहरे व आखों में पुरानी दृढ़ता लौटने लगी। वे राज्य को और भी विवेक तथा कुशलता से चलाता रहा।
लेकिन कुछ दिनों में नगर की फ़िज़ाओं में फिर एक कानाफूसी जन्मी। अफ़वाह की शक्ल में उपजी ये खबर जल्दी ही राज्य के सिर चढ़ कर बोलने लगी। इसने राज्य को हिला दिया।
और ये अफ़वाह थी कि राजकन्या गर्भवती है।
इस खबर ने जब सुदूर पहुँच कर युवराज के पिता, ठाकुर के पुराने जर्जर महल में दस्तक दी तो ठाकुर का दिल बल्लियों उछलने लगा, उसने किलकारी भर कर उल्लास से कहा-"युवराज अमर रहे। अब उसका ताज सुनिश्चित हुआ, अब कोई उसे राजा बनने से नहीं रोक सकता। सुन्दर चेहरे की आड़ में मेरे भेजे हुए काले दिल के उस खूबसूरत नौजवान ने अपना काम बखूबी कर दिया। राजकन्या को अपने मोहपाश में लेकर वह अपना वीर्य उसके नसीब पर थोप आया। शाबाश नौजवान, तुम्हें इनाम मिलेगा !"
उसने इस खबर को दुनिया भर में दावानल की तरह फैला दिया। पुत्र के वेश में युवराज बनी अपनी प्यारी बेटी के राज्याभिषेक की कल्पना से वह गदगद होकर नाचने लगा, उसने अपने मित्रों और शुभचिंतकों के बीच जश्न के लिए अपना धन वेगवती नदी की तरह बहाना शुरू कर दिया।
कुछ संयत होकर राजकुमारी मानो अपने आप से ही कह उठी- ओह, एक पल को तो मैं समझी थी कि वो निष्ठुर पिघल रहा है। वो मुझसे प्यार स्वीकार करेगा,प्यार जतायेगा, पर उसने तो मेरे अभिसार को किसी श्वान की भांति झटक दिया, मैं नफ़रत करती हूँ उस से।
समय गुज़रता रहा। राजकन्या की ज़िन्दगी में एक गहरी उदासी फिर पसर गयी। अब युवराज और राजकुमारी कभी भी,कहीं भी साथ न देखे जाते। महाराज भी गहरे विषाद में डूब गए। लेकिन शासकीय मामलों में और भी गहराई से जुटे युवराज के चेहरे व आखों में पुरानी दृढ़ता लौटने लगी। वे राज्य को और भी विवेक तथा कुशलता से चलाता रहा।
लेकिन कुछ दिनों में नगर की फ़िज़ाओं में फिर एक कानाफूसी जन्मी। अफ़वाह की शक्ल में उपजी ये खबर जल्दी ही राज्य के सिर चढ़ कर बोलने लगी। इसने राज्य को हिला दिया।
और ये अफ़वाह थी कि राजकन्या गर्भवती है।
इस खबर ने जब सुदूर पहुँच कर युवराज के पिता, ठाकुर के पुराने जर्जर महल में दस्तक दी तो ठाकुर का दिल बल्लियों उछलने लगा, उसने किलकारी भर कर उल्लास से कहा-"युवराज अमर रहे। अब उसका ताज सुनिश्चित हुआ, अब कोई उसे राजा बनने से नहीं रोक सकता। सुन्दर चेहरे की आड़ में मेरे भेजे हुए काले दिल के उस खूबसूरत नौजवान ने अपना काम बखूबी कर दिया। राजकन्या को अपने मोहपाश में लेकर वह अपना वीर्य उसके नसीब पर थोप आया। शाबाश नौजवान, तुम्हें इनाम मिलेगा !"
उसने इस खबर को दुनिया भर में दावानल की तरह फैला दिया। पुत्र के वेश में युवराज बनी अपनी प्यारी बेटी के राज्याभिषेक की कल्पना से वह गदगद होकर नाचने लगा, उसने अपने मित्रों और शुभचिंतकों के बीच जश्न के लिए अपना धन वेगवती नदी की तरह बहाना शुरू कर दिया।
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