मंगलवार, 7 मार्च 2017

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महाराज अपनी प्यारी बिटिया के इस नए सपने को जान कर मानो गंगा नहा गए थे और इन दोनों को विवाह बंधन में बांधने के मनसूबे पालने लगे थे। दिनों दिन राजकुमारी के दुःख भरे चेहरे पर नए प्यार की आभा बढ़ती जा रही थी किन्तु इस घटना ने युवराज की मुसीबतों को बुरी तरह बढ़ा दिया था। वे उपेक्षा की हद तक राजकुमारी के साये से भी दूर भागने लगा था। इसका कारण क्या था, ये कोई नहीं जानता था। जानता  था तो केवल और केवल युवराज।
जो युवराज महल में आते ही अपने तायाजी की इस बिटिया के दुःख में ढाढस बंधाता रहा था वही अब उसके सामने पड़ने से भी बचने लगा था। उसने राजकुमारी की अनदेखी शुरू कर दी थी।
लेकिन इस से स्थिति और भी ख़राब होती चली जाती थी। जितना युवराज राजकुमारी की उपेक्षा करता, उतना ही वह और भी शिद्दत से उसे चाह कर उसके करीब आने की कोशिश करती। वह रात दिन सुबह शाम किसी न किसी बहाने उसके साथ बनी रहने की कोशिश करती, वहीं युवराज काम का बहाना लेकर उसे टालने की कोशिश में रहता। दरबारियों, महल के निवासियों और राजकुमारी की सहेलियों के बीच यह सारा प्रकरण एक रहस्य का रूप लेता जा रहा था।
लेकिन ऐसा हमेशा चलते रहना संभव नहीं था। दुनिया-जहान में इस बारे में भी बातें होने लगीं।महाराज भी इस स्थिति से अपरिचित न रहे। बेचारा युवराज सबका दिल जीत कर भी किसी चक्रव्यूह में घिरने लगा। रहस्य ने कानाफूसी में बदल जाने में देर न की।
एक दिन दरबार से लौटे युवराज को राजकुमारी ने अकेले में घेर ही लिया। आलिंगन की लालसा ने दूरियों को पाटने का हौसला किया ही था कि युवराज किसी ब्रह्मचारी संन्यासी की भांति छिटक कर दूर हो गया।    
              

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