सभाकक्ष देखते-देखते वीरान हो गया। सभा बर्खास्त कर दी गयी। अपनी-अपनी अटकलें लगाते हुए लोग घरों को लौटने लगे।
बेहोशी की हालत में ठाकुर को राजवैद्य की देखरेख में उनकी हवेली वापस भेजा गया। जाते-जाते राजवैद्य ने युवराज के सम्मुख जब ये कहा कि ठाकुर को होश तो आ जायेगा, किन्तु इनके शरीर को गंभीर लकवा मार जाने का अंदेशा है, तो थोड़ी देर के लिए युवराज विचलित अवश्य हुआ। किन्तु फ़िलहाल इस से कहीं बड़ी चुनौती और कष्ट युवराज के अपने नसीब में थे, जिन्होंने युवराज को पिता की ओर से बेपरवाह कर दिया।
अर्ध-विक्षिप्तावस्था में राजकुमारी को उसके अपने शयन-कक्ष में भेजा गया किन्तु उसे सैनिकों की देखरेख में हिरासत में ही रखे जाने का फरमान जारी हुआ।
महाराज की हालत तो कुछ सोच-कह पाने की भी नहीं रही।
युवराज अपने कक्ष में इस तरह लौटा मानो चारों ओर से भयावह लहरों ने उसे घेर रखा हो। राज्य के भावी शासक के इम्तहान के रूप में ये घड़ी आई थी, जिससे विवेक,चतुराई और दूरदर्शिता से ही निकल पाना संभव था।
युवराज की बुद्धि ने पहला कदम ये सुझाया कि किसी भी तरह उस युवक को तलाश करके पकड़ा जाये जो राजकुमारी की देखरेख के लिए रखा गया था और जो राजकुमारी को अपने शरीर से भीतर तक छल गया था। युवराज को यह पता नहीं था कि वह सुन्दर युवक स्वयं उसके पिता ने ही राजकुमारी के महल में तैनात कराया था। युवराज ने किसी भी तरह उसे ढूंढ निकालने के लिए कमर कस ली।
महल के सुरक्षा प्रहरियों ने अनुभव किया कि युवराज देर रात तक शिकार का शौक फरमाने अपना घोड़ा लेकर अकेले ही निकलने लगा है।
बेहोशी की हालत में ठाकुर को राजवैद्य की देखरेख में उनकी हवेली वापस भेजा गया। जाते-जाते राजवैद्य ने युवराज के सम्मुख जब ये कहा कि ठाकुर को होश तो आ जायेगा, किन्तु इनके शरीर को गंभीर लकवा मार जाने का अंदेशा है, तो थोड़ी देर के लिए युवराज विचलित अवश्य हुआ। किन्तु फ़िलहाल इस से कहीं बड़ी चुनौती और कष्ट युवराज के अपने नसीब में थे, जिन्होंने युवराज को पिता की ओर से बेपरवाह कर दिया।
अर्ध-विक्षिप्तावस्था में राजकुमारी को उसके अपने शयन-कक्ष में भेजा गया किन्तु उसे सैनिकों की देखरेख में हिरासत में ही रखे जाने का फरमान जारी हुआ।
महाराज की हालत तो कुछ सोच-कह पाने की भी नहीं रही।
युवराज अपने कक्ष में इस तरह लौटा मानो चारों ओर से भयावह लहरों ने उसे घेर रखा हो। राज्य के भावी शासक के इम्तहान के रूप में ये घड़ी आई थी, जिससे विवेक,चतुराई और दूरदर्शिता से ही निकल पाना संभव था।
युवराज की बुद्धि ने पहला कदम ये सुझाया कि किसी भी तरह उस युवक को तलाश करके पकड़ा जाये जो राजकुमारी की देखरेख के लिए रखा गया था और जो राजकुमारी को अपने शरीर से भीतर तक छल गया था। युवराज को यह पता नहीं था कि वह सुन्दर युवक स्वयं उसके पिता ने ही राजकुमारी के महल में तैनात कराया था। युवराज ने किसी भी तरह उसे ढूंढ निकालने के लिए कमर कस ली।
महल के सुरक्षा प्रहरियों ने अनुभव किया कि युवराज देर रात तक शिकार का शौक फरमाने अपना घोड़ा लेकर अकेले ही निकलने लगा है।
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