मंगलवार, 7 मार्च 2017

[9]

राजकुमारी ने भी हार नहीं मानी। वह दोनों बाहें फैला कर युवराज के आलिंगन को तड़प उठी। किन्तु युवराज ने उसे शरीर को स्पर्श नहीं करने दिया। वह एक ओर हो कर निकलने लगा।
-"ओह, तुम इस तरह मुझसे दूर क्यों भागते हो?" राजकुमारी ने मिन्नत सी की।
युवराज को चुप देखकर वह फिर बोली-"आखिर मैंने किया क्या है ? मेरा अपराध क्या है, जो तुम इस तरह मुझसे अजनबी हो गए? तुम्हें तो मेरी चिंता हुआ करती थी। प्रिय, एक टूटे दिल को इस तरह मत दुखाओ,मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। तुम्हारी चुप्पी और बेरुखी मुझे मार डालेगी। मैं तुम्हें प्यार करती हूँ।  मुझसे बोलो, कुछ तो कहो जान?"
युवराज स्तब्ध रह गया। राजकन्या एक पल के लिए ठिठकी किन्तु फिर युवराज की रहस्यमयी चुप्पी ने उसकी आखों में एक सुलगती हुई दृढ़ता ला दी। उसने युवराज के गले से अपनी फैली बांहें हटा लीं। बोली-
-"तुम बदल रहे हो, तुम पिघल रहे हो, तुम भी मुझे प्यार करते हो, हाँ ! देखना एक दिन तुम मुझे चाहोगे। मेरे प्यारे युवराज। मैं पूजा करती हूँ तुम्हारी।"
युवराज का चेहरा पीला पड़ गया। वह भय और निराशा से सकपका गया।  वह लगभग चिल्लाने के अंदाज़ में बोल उठा-"तुम नहीं जानतीं कि तुम क्या कर रही हो, क्या कह रही हो, ये कभी भी संभव नहीं हो सकता। ऐसा कभी नहीं होगा।"कह कर वह राजकुमारी की ओर उपेक्षा से देखता हुआ तीर की तरह निकल गया।
राजकुमारी अपमानित और विक्षिप्त सी खड़ी रह गयी।         
                

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

[19]

युवक ने बचपन से अब तक की सारी कहानी युवराज को सुना डाली कि किस तरह युवक अपने पिता के साथ बचपन में युवराज के पिता की हवेली में आया करता था औ...