राजकुमारी की आवाज़ में जो विस्फ़ोट हुआ उस से धरती ऐसी हिली कि दो शरीर कंपकपाते हुए धराशाई हो गए। उधर सभासदों में बैठे ठाकुर बेहोश होकर नीचे गिरे, और इधर सिंहासन के समीप युवराज भी अपने को एकाएक संभाल नहीं सका।
विशाल कक्ष में बवंडर सा उठा और कोलाहल आंधी की तरह बढ़ने लगा।
अकस्मात आये तूफ़ान से अपने शयनकक्ष में लेटे महाराज भी विचलित होकर उठने की कोशिश करने लगे। उन्हें सेवकों ने मुश्किल से थामा।
युवराज के सामने इस आरोप से खुद को बचाने का एक ही रास्ता था कि वह अपनी असलियत ज़ाहिर करके अपनी नारी देह को सार्वजनिक रूप से अंगीकार करे, और राजकुमारी के प्रतिशोध में बोले गए इस इस सफ़ेद झूठ को सरासर बेनकाब करे।
लेकिन ये रास्ता भी किसी तरह निरापद नहीं था, इससे समस्या सुलझने वाली नहीं थी। युवराज के लिए तो इधर कुआ और उधर खाई थी। अपने नारीत्व को सरेआम स्वीकार कर लेने के बाद न अतीत बचता था, न भविष्य ! और इसे स्वीकार करने के अलावा दूसरा ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे राजकुमारी को झूठा सिद्ध किया जा सके। दोनों लंबे समय से एक ही महल में थे। केवल वे दोनों ही ये बात जानते थे कि युवराज ने राजकुमारी को छूना तो दूर, उसे अपने शरीर को स्पर्श तक नहीं करने दिया है।
लेकिन दोनों के दर्जनों दास-दासियों ने कई बार दोनों को अकेले और अंतरंग दिखाई देने वाले क्षणों में देखा था। जैसे-तैसे अपने को संभाल कर सभाकक्ष की हलचल के बीच युवराज बुझे स्वर में यही कह सका-" बंदिनी आपे में नहीं है, वह नहीं जानती कि वह क्या कह रही है, माननीय न्यायाधीशगण समय को थोड़ी मोहलत दें, ताकि या तो राजकुमारी अपने कहे असत्य वचन पर पश्चाताप जता सके, अथवा मैं ये सिद्ध कर सकूं कि लांछन सरासर मिथ्या है।
विशाल कक्ष में बवंडर सा उठा और कोलाहल आंधी की तरह बढ़ने लगा।
अकस्मात आये तूफ़ान से अपने शयनकक्ष में लेटे महाराज भी विचलित होकर उठने की कोशिश करने लगे। उन्हें सेवकों ने मुश्किल से थामा।
युवराज के सामने इस आरोप से खुद को बचाने का एक ही रास्ता था कि वह अपनी असलियत ज़ाहिर करके अपनी नारी देह को सार्वजनिक रूप से अंगीकार करे, और राजकुमारी के प्रतिशोध में बोले गए इस इस सफ़ेद झूठ को सरासर बेनकाब करे।
लेकिन ये रास्ता भी किसी तरह निरापद नहीं था, इससे समस्या सुलझने वाली नहीं थी। युवराज के लिए तो इधर कुआ और उधर खाई थी। अपने नारीत्व को सरेआम स्वीकार कर लेने के बाद न अतीत बचता था, न भविष्य ! और इसे स्वीकार करने के अलावा दूसरा ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे राजकुमारी को झूठा सिद्ध किया जा सके। दोनों लंबे समय से एक ही महल में थे। केवल वे दोनों ही ये बात जानते थे कि युवराज ने राजकुमारी को छूना तो दूर, उसे अपने शरीर को स्पर्श तक नहीं करने दिया है।
लेकिन दोनों के दर्जनों दास-दासियों ने कई बार दोनों को अकेले और अंतरंग दिखाई देने वाले क्षणों में देखा था। जैसे-तैसे अपने को संभाल कर सभाकक्ष की हलचल के बीच युवराज बुझे स्वर में यही कह सका-" बंदिनी आपे में नहीं है, वह नहीं जानती कि वह क्या कह रही है, माननीय न्यायाधीशगण समय को थोड़ी मोहलत दें, ताकि या तो राजकुमारी अपने कहे असत्य वचन पर पश्चाताप जता सके, अथवा मैं ये सिद्ध कर सकूं कि लांछन सरासर मिथ्या है।
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