शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

[19]

युवक ने बचपन से अब तक की सारी कहानी युवराज को सुना डाली कि किस तरह युवक अपने पिता के साथ बचपन में युवराज के पिता की हवेली में आया करता था और बाद में वहीं काम करने लगा। युवक की सेवा और स्वामीभक्ति से प्रसन्न होकर युवराज के पिता ने उसे इस शाहीमहल में भेजने का फ़ैसला किया।
दुर्भाग्य से युवक के पिता का देहांत हो जाने के कारण युवक को छोटी उम्र में ही अब किसी बड़े रोज़गार की ज़रूरत थी ताकि वह अपनी माता और छोटे भाई-बहनों का लालन -पालन कर सके। युवराज के पिता ने भारी इनाम-इकराम और धनराशि के साथ युवक को यहाँ भेजा तो उसने इस अवसर को अपनी सेवा और स्वामीभक्ति का फल ही समझा,और उसकी माता ने भी इसे युवराज के पिता की कृतज्ञता मान कर लड़के को महल में आने की सहमति दी। किन्तु बिना बाप के उस लड़के को जब यहाँ उसका काम समझाया गया तो उसका माथा चकराया।
उसकी स्थिति ऐसी थी कि वह न तो किसी से कुछ कह सकता था और न ही अपने घर वापस लौट सकता था। उसे यहाँ छोड़ने स्वयं युवराज के पिता, छोटे ठाकुर आये थे।
उससे कहा गया कि उसे यहां रह कर राजकुमारी की देखभाल करनी है। हर पल, हर जगह उसे राजकुमारी के साथ रहने की हिदायत भी दी गयी।
आरम्भ में वह बहुत खुश हुआ किन्तु तब उसे बड़ा धक्का लगा जब खुद छोटे ठाकुर ने उसे उनके इरादे के बारे में बताया। वे चाहते थे कि राजकुमारी न तो ठीक से पढ़-लिख सके और न ही किसी बात को समझ पाने के योग्य हो सके, एक तरह से उसका जीवन नष्ट करने का काम ही उस युवक को करना था। भला एक भोले-भाले नवयुवक के लिए इस से ज़्यादा घृणित कार्य और क्या हो सकता था कि उसे एक निर्दोष सुंदरी के तन-मन को क्षत-विक्षत करने के लिए कहा जाये।                   

बुधवार, 5 जुलाई 2017

[18]

युवक को ये मालूम था कि युवराज वस्तुतः कन्या ही है, इसलिए उसके पुरुष वेश में होने के बावजूद युवक बैठने में संकोच कर रहा था, किन्तु युवराज का संकेत पाकर युवक कक्ष की सज्जा को देखता हुआ एक ओर कुछ दूरी बना कर बैठ गया।
युवक ने बिना विलम्ब किये वह पत्र युवराज को सौंप दिया जो उसे युवराज के पिता ने दिया था। युवराज ने सरसरी निगाह से उसे पढ़ डाला। अब चौंकने की बारी युवराज की थी।पत्र पढ़ते ही युवराज को यह पता चला कि यह युवक वही था जिसे युवराज के पिता ने कभी राजकुमारी की देखभाल के नाम पर इस महल में भेजा था, और राजकुमारी के गर्भ में इसी का वीर्य आज सबके संकट का कारण बना हुआ था।
युवराज का मस्तिष्क थोड़ी देर के लिए सुन्न हो गया, उसे ये भी भान न रहा कि पिता का भेजा हुआ उनका विश्वासपात्र ये युवक युवराज का हितचिंतक है और संकट की इस घड़ी में उसी की मदद के लिए भेजा गया है। इतना ही नहीं, बल्कि वर्षों से वह युवराज के पिता के साथ मिल कर युवराज को राजपाट दिलाने की षड्यन्त्रभरी मुहिम में शामिल है।
पत्र पढ़ लेने के बाद जहाँ एक ओर विचित्र आत्मीय दृष्टि से युवक युवराज की ओर  देख रहा था वहीं दूसरी ओर युवराज की नज़रों में शोले से दहकने लगे। युवराज ने आव देखा न ताव,पलट कर एक भरपूर तमाचा युवक के गाल पर रसीद कर दिया।  युवक पीड़ा से ज़्यादा अपमान से तिलमिला कर रह गया।
युवक कई महीनों तक इसी महल में राजकुमारी के साथ रह चुका था, किन्तु उस समय वह वेश बदल कर एक शिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में रहा था, इसी से युवराज या अन्य कोई कर्मचारी महल में उसे पहचान नहीं सके थे। फिर भी इस तरह हुए अपमान की उसने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी, अतः युवराज के इस रौद्र व्यवहार से वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। उसे अच्छी तरह मालूम था कि युवराज के एक संकेत पर उसे शाही कैदखाने में डाला जा सकता था।
उसने तत्काल झुक कर युवराज के पैर पकड़ लिए। वह युवराज के पिता का विश्वासपात्र सही, किन्तु युवराज और राजकुमारी के लिए तो घोर अपराधी ही था।
युवराज ने तुरंत ही अपने क्रोध को वश में कर लिया, अब वे दोनों शांति से बैठे धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे।                  

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

[17]

युवराज के सामने अब दोहरी चुनौती थी।  तेज़ी से भागते बहुत थोड़े से समय में ही उसे सार्वजनिक सभा में राजकुमारी को झूठा सिद्ध करके अपना भविष्य बचाना था और साथ ही इस पहेली का कोई स्थायी हल तलाश करना था कि एक विशाल साम्राज्य के शाही महल में एक स्त्री होते हुए भी पुरुष के रूप में कैसे रहते रहा जाये। युवराज के पिता ने सत्ता के लालच में अकारण ही एक बड़ा षड़यंत्र रच कर ये गुत्थी उलझा दी थी।
किन्तु किसी सौगात की तरह, गहराती रात के उस नीरव सन्नाटे में युवराज को अपनी उलझन का एक सिरा अचानक मिल गया।
युवराज की बेचैनी करवटें बदल ही रही थी कि सहसा कक्ष के द्वार पर हल्की दस्तक हुई। द्वारपाल को युवराज ने पहले ही सोने के लिए भेज दिया था। युवराज ने अचंभित होते हुए उठकर स्वयं दरवाज़ा खोल दिया। सामने एक बेहद सुदर्शन आकर्षक युवक नज़रें नीची किये खड़ा था।
और कोई समय होता तो महल के प्रहरी इस तरह युवराज के शयनकक्ष तक निर्बाध किसी युवक को न आने देते। स्वयं युवराज का हाथ भी तत्काल सतर्कता से कटार पर चला जाता। किन्तु आने वाले युवक ने एक पल की भी देर किये बिना सोने का वह छोटा सा ताबीज़ युवराज के सामने कर दिया,जिसे देखते ही पहचान कर युवराज ने तत्काल रास्ता देते हुए युवक को भीतर आ जाने का संकेत किया।
ताबीज़ युवराज के पिता द्वारा दिया गया था,जिसका तात्पर्य ये था कि युवक को पिता द्वारा भेजा गया है।युवराज ने चैन की साँस ली और युवक को बैठ जाने का इशारा किया।
             

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

[16]

युवराज को रात भर नींद नहीं आई। उसकी जागी आँखें लगातार ये सोचती रहीं कि उस निर्जन बियाबान झील के किनारे उसे इस तरह बिलकुल निर्वस्त्र देख कर भाग जाने वाला कौन हो सकता है?   

मंगलवार, 14 मार्च 2017

[15]

ये एक छोटी सी झील थी जो चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी थी। इसी के एक ओर पहाड़ी से गिरता साफ पानी का झरना इस झील में पानी की सतत आमद बनाये रखता था। पानी के स्वच्छ होने का कारण भी संभवतः यही था कि झील की सतह पथरीली और मानव-रहित थी।  इस निर्जन एकांत में दूर-दूर तक किसी का नामो-निशान दिखाई न देता था।
आज न जाने कैसे, कहाँ से भटक कर कोई युवक यहाँ आ पहुंचा था, और इस निर्जन मनोरम स्थल पर झरने के नीचे स्नान करने से स्वयं को रोक नहीं पाया था। शायद उसकी थकान को फुहारों ने अपनी ओर खींचा हो।
इस प्राकृतिक सुनसान में युवक ने अपने शरीर पर किसी मानव-निर्मित आवरण की कोई ज़रूरत नहीं समझी थी। वह पूर्णतः निर्वस्त्र था।
किन्तु थोड़ी देर के ठन्डे जल के इस अंतरंग स्पर्श ने उसे कुदरत के बिलकुल समीप कर दिया। अब वह किसी रहस्यमयी नज़र से चारों ओर देख रहा था। दूर-दूर तक किसी परिंदे तक के होने की सम्भावना न पाकर युवक ने अपने सीने पर कस कर बंधे एक चमड़े के पट्टे को हौले से खोल दिया। शरीर के ही रंग का यह पट्टा जब तक युवक के सीने पर था, यह शरीर का ही एक भाग नज़र आता था। किन्तु अब इसके हटते ही निर्जन वादियों ने हैरानी से वह वक्षस्थल देखा जिस पर दो कसे हुए विशाल नुकीले स्तन किसी गुब्बारे की तरह लहराने लगे। और तभी चारों ओर फैले सन्नाटे को उस युवक की बेशुमार खूबसूरती का कारण समझ में आया।
वस्तुतः वह एक युवती ही थी जो युवक के वेश में घूम रही थी। उसने अपने उन्नत स्तनों को ढकने के लिए ही चमड़े के उस गंदुमी रंग में रंगे पट्टे का प्रयोग किया था जो सहसा उसके शरीर की असलियत पता नहीं चलने देता था।
अपने सहज स्वाभाविक रूप में आते ही युवती की स्त्रियोचित सुकुमारता जाग उठी और वह अपने वक्षों को अँगुलियों से भींच कर पानी में उनका अक्स देखने का लोभ संवरण नहीं कर सकी।
पानी में चन्द्रमा के जुड़वां रूप क्या दिखे कि कुछ दूर खड़े उसके घोड़े की हिनहिनाहट भी तत्क्षण सुनाई दी। चौंक कर युवती ने उस ओर देखा और पाया कि घोड़े के पिछवाड़े के दरख़्त की ओट से किसी सरसराहट की आवाज़ भी सन्नाटे को चीर गयी है। कोई तीर की तरह वहां से निकल कर ओझल हो गया था।                       

[14]

सभाकक्ष देखते-देखते वीरान हो गया।  सभा बर्खास्त कर दी गयी। अपनी-अपनी अटकलें लगाते हुए लोग घरों को लौटने लगे।
बेहोशी की हालत में ठाकुर को राजवैद्य की देखरेख में उनकी हवेली वापस भेजा गया। जाते-जाते राजवैद्य ने युवराज के सम्मुख जब ये कहा कि ठाकुर को होश तो आ जायेगा, किन्तु इनके शरीर को गंभीर लकवा मार जाने का अंदेशा है, तो थोड़ी देर के लिए युवराज विचलित अवश्य हुआ। किन्तु फ़िलहाल इस से कहीं बड़ी चुनौती और कष्ट युवराज के अपने नसीब में थे, जिन्होंने युवराज को पिता की ओर से बेपरवाह कर दिया।
अर्ध-विक्षिप्तावस्था में राजकुमारी को उसके अपने शयन-कक्ष में भेजा गया किन्तु उसे सैनिकों की देखरेख में हिरासत में ही रखे जाने का फरमान जारी हुआ।
महाराज की हालत तो कुछ सोच-कह पाने की भी नहीं रही।
युवराज अपने कक्ष में इस तरह लौटा मानो चारों ओर से भयावह लहरों ने उसे घेर रखा हो। राज्य के भावी शासक के इम्तहान के रूप में ये घड़ी आई थी, जिससे विवेक,चतुराई और दूरदर्शिता से ही निकल पाना संभव था।
युवराज की बुद्धि ने पहला कदम ये सुझाया कि किसी भी तरह उस युवक को तलाश करके पकड़ा जाये जो राजकुमारी की देखरेख के लिए रखा गया था और जो राजकुमारी को अपने शरीर से भीतर तक छल गया था।  युवराज को यह पता नहीं था कि वह सुन्दर युवक स्वयं उसके पिता ने ही राजकुमारी के महल में तैनात कराया था। युवराज ने किसी भी तरह उसे ढूंढ निकालने के लिए कमर कस ली।
महल के सुरक्षा प्रहरियों ने अनुभव किया कि युवराज देर रात तक शिकार का शौक फरमाने अपना घोड़ा लेकर अकेले ही निकलने लगा है।              

सोमवार, 13 मार्च 2017

[13]

राजकुमारी की आवाज़ में जो विस्फ़ोट हुआ उस से धरती ऐसी हिली कि दो शरीर कंपकपाते हुए धराशाई हो गए। उधर सभासदों में बैठे ठाकुर बेहोश होकर नीचे गिरे, और इधर सिंहासन के समीप युवराज भी अपने को एकाएक संभाल नहीं सका।
विशाल कक्ष में बवंडर सा उठा और कोलाहल आंधी की तरह बढ़ने लगा।
अकस्मात आये तूफ़ान से अपने शयनकक्ष में लेटे महाराज भी विचलित होकर उठने की कोशिश करने लगे। उन्हें सेवकों ने मुश्किल से थामा।
युवराज के सामने इस आरोप से खुद को बचाने का एक ही रास्ता था कि वह अपनी असलियत ज़ाहिर करके अपनी नारी देह को सार्वजनिक रूप से अंगीकार करे, और राजकुमारी के प्रतिशोध में बोले गए इस इस सफ़ेद झूठ को सरासर बेनकाब करे।
लेकिन ये रास्ता भी किसी तरह निरापद नहीं था, इससे समस्या सुलझने वाली नहीं थी। युवराज के लिए तो इधर कुआ और उधर खाई थी। अपने नारीत्व को सरेआम स्वीकार कर लेने के बाद न अतीत बचता था, न भविष्य ! और इसे स्वीकार करने के अलावा दूसरा ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे राजकुमारी को झूठा सिद्ध किया जा सके। दोनों लंबे समय से एक ही महल में थे। केवल वे दोनों ही ये बात जानते थे कि युवराज ने राजकुमारी को छूना तो दूर, उसे अपने शरीर को स्पर्श तक नहीं करने दिया है।
लेकिन दोनों के दर्जनों दास-दासियों ने कई बार दोनों को अकेले और अंतरंग दिखाई देने वाले क्षणों में देखा था।  जैसे-तैसे अपने को संभाल कर सभाकक्ष की हलचल के बीच युवराज बुझे स्वर में यही कह सका-" बंदिनी आपे  में नहीं है, वह नहीं जानती कि वह क्या कह रही है, माननीय न्यायाधीशगण समय को थोड़ी मोहलत दें, ताकि या तो राजकुमारी अपने कहे असत्य वचन पर पश्चाताप जता सके, अथवा मैं ये सिद्ध कर सकूं कि लांछन सरासर मिथ्या है।              

रविवार, 12 मार्च 2017

[12]

युवराज को बेचैनी से पहलू बदलते सारे दरबार ने देखा। दूरी न होती तो शायद युवराज के माथे पर आये पसीने की बूँदें भी लोग देखते। न्याय का यह पहला ही मुकदमा इतना विचित्र था कि मुल्ज़िमा और कार्यवाहक सम्राट दोनों की आँखें नम थीं। भीगी आँखों से ही युवराज के होठ कुछ कहने के लिए खुले कि होठों की जुम्बिश से पहले ही न्यायाधिपति बोल पड़े-" नहीं, यहाँ से नहीं ...युवराज सज़ा सुनाने के लिए सम्राट का आसन ग्रहण करें।"
यह सुनते ही युवराज के सीने पर एक थरथराहट भरी लहर गुज़री, और ठीक ऐसा ही दरबार में सभासदों के बीच बैठे उसके पिता, ठाकुर के साथ भी हुआ।
-"पर युवराज का अभी राज्याभिषेक नहीं हुआ है, ये वहां कैसे बैठ सकता है?".... ठाकुर खड़े होकर अकस्मात बोल पड़े। उनका और युवराज का चेहरा भरे दरबार की अचंभित पैनी निगाहों से भयभीत हो, पीला पड़ गया।
पर वहां बैठना ज़रूरी था। सज़ा की कीमत तभी थी जब वह सिंहासन से सुनाई जाये। चारों ओर से घूरती निगाहें तुरंत शक़ करने लग जातीं यदि वहां बैठने में देर लगती।
युवराज सिंहासन की ओर बढ़ा ओर उस पर सहजता से बैठने का भ्रम देते हुए बोल पड़ा-"मुल्ज़िमा, महाराज की आज्ञा और राज्य के आदेश से मुझे अपने दायित्व का निर्वहन करना ही होगा, जिससे मैं कतई पीछे नहीं हटूंगा। मेरी बात ध्यान से सुनो-राज्य के प्राचीनकाल से चले आ रहे क़ानून के अन्तर्गत तुम्हें मृत्युदंड मिलना अवश्यम्भावी है, किन्तु इस स्थिति से बचने का केवल एक ही रास्ता भी है कि तुम अपनी संतान के होने वाले पिता का नाम उजागर कर दो, बता दो कि तुम्हारे शरीर से इस तरह खेल जाने वाला कौन है ?"
दरबार में सन्नाटा पसर गया। एक ऐसी ख़ामोशी व्याप गयी, जिसमें दिलों की धड़कनें भी साफ़ सुनी जा सकें।
आखों में नफरत के शोले लिए राजकुमारी ने बदन की हलकी जुम्बिश के साथ अपनी अंगुली सामने खड़े युवराज की ओर बढ़ा दी , बोली-" तुम ! तुम हो वो आदमी।"
न्याय के सर्वोच्च आसन के समीप खड़े असहाय, हताश, युवराज के चेहरे पर सहसा मुर्दनी छा गयी। धरती की कौन सी ताकत अब उसे बचा सकती थी ?                          

[11]

आखिर बिनब्याही माँ बनी राजकन्या के अपराध पर दंड देने के लिए लिए सुनवाई का दिन आया। शाही महल में लगी अदालत में राज्य के तमाम आम-ओ-ख़ास उमड़ पड़े। दरबार में तिल रखने की जगह न बची। मुज़रिम राजकन्या कक्ष में बने एक कटघरे में सिर झुकाये आ बैठी।
मुख्य आसन पर युवराज विराजमान था। उसके दोनों ओर राज्य के तमाम न्यायाधीश मुख्य न्यायाधिपति के साथ बिराजे थे। महाराज का हुकुम था कि उनकी बेटी पर बिना किसी पक्षपात के मुकदमा चले और उसे राज्य के कानून के मुताबिक ही दंड मिले।
किन्तु ऐसा कह कर वे बैठे न रह सके। उन्हें उनकी शैया पर ही शयनकक्ष में लिटाया गया।  लगता था कि अब ज़्यादा दिन बचेंगे नहीं।
युवराज ने इच्छा जाहिर की, कि राजकुमारी का फ़ैसला महाराज स्वयं करें। किन्तु ऐसा नहीं हुआ। युवराज को महाराज का कहा मानने के लिए न्याय के तख़्त पर आसीन होना पड़ा।
इस विराट जनसभा में शायद सबसे उदास दिल युवराज के सीने में ही धड़क रहा था, और शायद सबसे खुश था युवराज का पिता ठाकुर जो चुपचाप,युवराज को बिना बताये यहाँ चला आया था और अब दरबारियों के झुण्ड में अपने नसीब के खुल जाने का सपना लिए पीछे बैठा था।
आरंभिक औपचारिकताओं के बाद माननीय मुख्य न्यायाधिपति का स्वर गूंजा -
-"मुल्ज़िमा खड़ी हो.... "
न जाने किन खयालों में खोई राजकुमारी अपने स्थान से उठ कर दरबार से मुखातिब हुई। न्यायाधिपति ने कहा-
-"सम्माननीय राजकुमारी, यह महान दरबार तुम पर आक्षेप लगा रहा है कि विवाह के पवित्र बंधन में बंधे बिना ही तुमने मातृत्व का बोझ उठा कर राज्य की महान परम्पराओं और मान्यताओं के साथ खिलवाड़ कर कानून को विवश किया है कि तुम्हें दंड दे, जो कि इस अपराध में मृत्युदंड ही है। यद्यपि तुम्हें ये सज़ा कार्यवाहक सम्राट युवराज द्वारा ही सुनाई जाएगी, तथापि तुम्हें अपनी ओर से कुछ कहना है तो कहो?"                     

शनिवार, 11 मार्च 2017

[10]

कुछ पल गुज़रे होंगे कि उधर राजकुमारी अपने कक्ष में हताश और निराश होकर रो रही थी, और इधर युवराज अपने कक्ष में मुंह लटका कर किंकर्तव्यविमूढ़ बैठा हुआ था। दोनों बुरी तरह उदास थे, मानो जीवन ही व्यर्थ हो गया हो।
कुछ संयत होकर राजकुमारी मानो अपने आप से ही कह उठी- ओह, एक पल को तो मैं समझी थी कि वो निष्ठुर पिघल रहा है। वो मुझसे प्यार स्वीकार करेगा,प्यार जतायेगा, पर उसने तो मेरे अभिसार को किसी श्वान की भांति झटक दिया, मैं नफ़रत करती हूँ उस से।
समय गुज़रता रहा। राजकन्या की ज़िन्दगी में एक गहरी उदासी फिर पसर गयी। अब युवराज और राजकुमारी कभी भी,कहीं भी साथ न देखे जाते। महाराज भी गहरे विषाद में डूब गए। लेकिन शासकीय मामलों में और भी गहराई से जुटे युवराज के चेहरे व आखों में पुरानी दृढ़ता लौटने लगी।  वे राज्य को और भी विवेक तथा कुशलता से चलाता रहा।
लेकिन कुछ दिनों में नगर की फ़िज़ाओं में फिर एक कानाफूसी जन्मी। अफ़वाह की शक्ल में उपजी ये खबर जल्दी ही राज्य के सिर चढ़ कर बोलने लगी। इसने राज्य को हिला दिया।
और ये अफ़वाह थी कि राजकन्या गर्भवती है।
इस खबर ने जब सुदूर पहुँच कर युवराज के पिता, ठाकुर के पुराने जर्जर महल में दस्तक दी तो ठाकुर का दिल बल्लियों उछलने लगा, उसने किलकारी भर कर उल्लास से कहा-"युवराज अमर रहे। अब उसका ताज सुनिश्चित हुआ, अब कोई उसे राजा बनने से नहीं रोक सकता। सुन्दर चेहरे की आड़ में मेरे भेजे हुए काले दिल के उस खूबसूरत नौजवान ने अपना काम बखूबी कर दिया। राजकन्या को अपने मोहपाश में लेकर वह अपना वीर्य उसके नसीब पर थोप आया। शाबाश नौजवान, तुम्हें इनाम मिलेगा !"
उसने इस खबर को दुनिया भर में दावानल की तरह फैला दिया। पुत्र के वेश में युवराज बनी अपनी प्यारी बेटी के राज्याभिषेक की कल्पना से वह गदगद होकर नाचने लगा, उसने अपने मित्रों और शुभचिंतकों के बीच जश्न के लिए अपना धन वेगवती नदी की तरह बहाना शुरू कर दिया।  
                 

मंगलवार, 7 मार्च 2017

[9]

राजकुमारी ने भी हार नहीं मानी। वह दोनों बाहें फैला कर युवराज के आलिंगन को तड़प उठी। किन्तु युवराज ने उसे शरीर को स्पर्श नहीं करने दिया। वह एक ओर हो कर निकलने लगा।
-"ओह, तुम इस तरह मुझसे दूर क्यों भागते हो?" राजकुमारी ने मिन्नत सी की।
युवराज को चुप देखकर वह फिर बोली-"आखिर मैंने किया क्या है ? मेरा अपराध क्या है, जो तुम इस तरह मुझसे अजनबी हो गए? तुम्हें तो मेरी चिंता हुआ करती थी। प्रिय, एक टूटे दिल को इस तरह मत दुखाओ,मुझे तुम्हारी ज़रूरत है, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। तुम्हारी चुप्पी और बेरुखी मुझे मार डालेगी। मैं तुम्हें प्यार करती हूँ।  मुझसे बोलो, कुछ तो कहो जान?"
युवराज स्तब्ध रह गया। राजकन्या एक पल के लिए ठिठकी किन्तु फिर युवराज की रहस्यमयी चुप्पी ने उसकी आखों में एक सुलगती हुई दृढ़ता ला दी। उसने युवराज के गले से अपनी फैली बांहें हटा लीं। बोली-
-"तुम बदल रहे हो, तुम पिघल रहे हो, तुम भी मुझे प्यार करते हो, हाँ ! देखना एक दिन तुम मुझे चाहोगे। मेरे प्यारे युवराज। मैं पूजा करती हूँ तुम्हारी।"
युवराज का चेहरा पीला पड़ गया। वह भय और निराशा से सकपका गया।  वह लगभग चिल्लाने के अंदाज़ में बोल उठा-"तुम नहीं जानतीं कि तुम क्या कर रही हो, क्या कह रही हो, ये कभी भी संभव नहीं हो सकता। ऐसा कभी नहीं होगा।"कह कर वह राजकुमारी की ओर उपेक्षा से देखता हुआ तीर की तरह निकल गया।
राजकुमारी अपमानित और विक्षिप्त सी खड़ी रह गयी।         
                

[8]

महाराज अपनी प्यारी बिटिया के इस नए सपने को जान कर मानो गंगा नहा गए थे और इन दोनों को विवाह बंधन में बांधने के मनसूबे पालने लगे थे। दिनों दिन राजकुमारी के दुःख भरे चेहरे पर नए प्यार की आभा बढ़ती जा रही थी किन्तु इस घटना ने युवराज की मुसीबतों को बुरी तरह बढ़ा दिया था। वे उपेक्षा की हद तक राजकुमारी के साये से भी दूर भागने लगा था। इसका कारण क्या था, ये कोई नहीं जानता था। जानता  था तो केवल और केवल युवराज।
जो युवराज महल में आते ही अपने तायाजी की इस बिटिया के दुःख में ढाढस बंधाता रहा था वही अब उसके सामने पड़ने से भी बचने लगा था। उसने राजकुमारी की अनदेखी शुरू कर दी थी।
लेकिन इस से स्थिति और भी ख़राब होती चली जाती थी। जितना युवराज राजकुमारी की उपेक्षा करता, उतना ही वह और भी शिद्दत से उसे चाह कर उसके करीब आने की कोशिश करती। वह रात दिन सुबह शाम किसी न किसी बहाने उसके साथ बनी रहने की कोशिश करती, वहीं युवराज काम का बहाना लेकर उसे टालने की कोशिश में रहता। दरबारियों, महल के निवासियों और राजकुमारी की सहेलियों के बीच यह सारा प्रकरण एक रहस्य का रूप लेता जा रहा था।
लेकिन ऐसा हमेशा चलते रहना संभव नहीं था। दुनिया-जहान में इस बारे में भी बातें होने लगीं।महाराज भी इस स्थिति से अपरिचित न रहे। बेचारा युवराज सबका दिल जीत कर भी किसी चक्रव्यूह में घिरने लगा। रहस्य ने कानाफूसी में बदल जाने में देर न की।
एक दिन दरबार से लौटे युवराज को राजकुमारी ने अकेले में घेर ही लिया। आलिंगन की लालसा ने दूरियों को पाटने का हौसला किया ही था कि युवराज किसी ब्रह्मचारी संन्यासी की भांति छिटक कर दूर हो गया।    
              

सोमवार, 6 मार्च 2017

[7]

युवराज के लिए ये प्रशंसा और ख़ुशी एक अलग तरह का विचित्र अनुभव था। कोई सोच भी नहीं सकता था कि ज़माने भर की ख़ुशी और सहयोग पाने वाला ये नया युवराज भीतर से किसी बात को लेकर इतना भयभीत और चिंतित भी हो सकता है।
और इस चिंता में एकाएक एक दिन और भी बढ़ोतरी हो गई, जब युवराज को मालूम पड़ा कि युवा राजकुमारी उस से प्रेम करने लगी है। जब से उसका प्यारा रखवाला दोस्त एक खलनायक सिद्ध होकर उसे छोड़ भागा था वह जैसे मर-मर कर जीती रही थी। किन्तु अब नए युवराज ने उस के मन-प्राण में प्यार की नशीली ज्योत जगा दी। कुछ दिन तक तो ये एकतरफ़ा प्यार राजकन्या के सीने में ही कुलबुलाता रहा पर एक दिन युवराज से सामना होने पर ये युवराज पर भी ज़ाहिर हो गया।
युवराज के लिए ये उपलब्धि किसी अग्नि-परीक्षा से कम नहीं थी। एक तरफ पूरा  नगर अपने होने वाले राजा और उसकी मासूम नादान प्रेयसी के बीच पल्लवित गहन प्रीत की बयार में नहाने लगा था, वहीं दूसरी ओर युवराज इसके खतरे से अपनी रातों की नींद गवा चुका था।
मुश्किल ये थी कि वयोवृद्ध महाराज को भी ये समीकरण बेहद पसंद आया था।                  

रविवार, 5 मार्च 2017

[6]

चंद दिनों बाद राजधानी की आबोहवा में उल्लास और गहमा-गहमी घुल गए।  राज्य के नए युवा शासक के आ जाने से प्रजा के साथ-साथ महाराज भी फूले न समाते थे। बेहद सुन्दर-सुदर्शन युवा शासक ने पलक झपकते ही सभी का दिल जीत लिया। सेना, दरबारियों और स्वयं महाराज द्वारा मिले इस अभूतपूर्व सम्मान व आत्मीयता ने युवक के मन के सभी संशय और डर ओझल कर दिए।
किन्तु इसी विराट महल के एक अन्य वीरान से कक्ष का नज़ारा कुछ और ही था। कक्ष के एक सुनसान से झरोखे में महाराज की अपनी पुत्री, राज्य की किशोर-वया राजकुमारी आँखों में विराट शून्य लिए उदास खड़ी थी। उसकी लाल और सूजी हुई आँखें आंसुओं से अब भी तर थीं। वह कक्ष में नितांत अकेली थी। वह मन ही मन बुदबुदाते हुए मानो स्वयं से ही वार्तालाप में तल्लीन थी।
-"वो दुष्ट लड़का चला गया। वह राज्य ही छोड़ गया, ओह, यकीन नहीं होता। मुझे खुद ये इल्म नहीं था कि वह इस तरह जायेगा, पर यही सच है। मैंने उसे मन के अंतिम छोर से प्यार किया। मैं जानती थी कि महाराज उस से मेरा विवाह कभी नहीं करेंगे, फिर भी मैं उसे चाहने का साहस कर बैठी। उसकी युवा मासूमियत आखिर मुझे धोखा दे गयी। ... पर अब मुझे उस से नफरत है। अब मैं मन के उसी अंतिम छोर से घृणा करती हूँ उससे। ओह, उस जवान खूबसूरत ज़िस्म के मोह में पड़ कर मैं बरबाद हो गयी। अब मेरा क्या होगा? मैं जीते जी मर गयी...मैं पागल हो जाउंगी।"
कुछ महीने और गुज़र गए। एक ओर तनहाई और अंधेरों में गुम राजकन्या और दूसरी ओर अपनी दयालुता, विवेक और बुद्धिमानी भरे फैसलों से दिनों दिन लोकप्रिय होते युवराज। शासन और सत्ता स्वयं खिंची चली आई। बूढ़े महाराज युवराज की बुद्धिमत्ता से कायल होकर अपना सब कुछ उसके अधिकार में सौंपते जाते थे और सिंहासन से विरक्त होते जाते थे।वे परम संतुष्ट और सुखी थे।                          

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

[5]

पिता के तेवर देख कर पुत्री अवाक रह गयी। पिता ने इस पल की अपने प्रति पक्षधरता को फ़ौरन भाँपा और स्वर बदल कर कहा-"इन बातों को यहीं ख़त्म करो बेटी। याद रखो, ऐसा करके तुम्हें जीवन भर दुःख और आँसू के सिवा और कुछ नहीं मिलेगा।"
पुत्री से भी अपने पिता की निराश आँखें देखी नहीं गयीं और वह उनका कहा मान कर रात में ही अपने शुभचिंतकों की फौज़ लेकर उनके उद्देश्य को पूरा करने के लिए निकल पड़ी।
बूढ़ा पिता पुत्री को षड़यंत्र के रास्ते पर भेज कर कुछ पल सोचता रहा, फिर पास ही बैठी अपनी पत्नी से मुखातिब हुआ, बोला -"मैंने पिछले कुछ महीनों से अपने विश्वासपात्र एक युवक को भाई के महल में उसकी पुत्री की देखभाल के नाम पर लगा रखा है जो उसे पढ़ाई-समझ-चतुराई जैसे किसी भी काम में दक्ष नहीं होने देगा, और उसे झूठी प्रेम-प्रीत में उलझा कर उसका ध्यान बँटाये रखेगा। ऐसा न करूँ तो एक दिन हमारा सपना टूट सकता था। पर अब उसके वहां होने से हमारा काम बिलकुल आसान हो जायेगा। कोई हमारी बेटी को रानी बनने से नहीं रोक सकेगा।"
आशंकित होकर पत्नी ने कहा-"मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा है, ईश्वर सब भला करे।"
-"धीरज रखो, सिंहासन यूँ ही नहीं मिल जाते।"                  

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

[4]

ठाकुर ने कहना जारी रखा-"बेटी ध्यान से सुनो, तुम्हें मेरी एक-एक बात का सावधानी से ध्यान रखना है। हमारे राज्य में वर्षों से ये मान्यता रही है कि यदि कभी कोई औरत गद्दी पर बैठी तो सिंहासन पर बैठते ही उसका देहांत हो जायेगा।"
- "आपको यक़ीन है ऐसी मान्यता पर ?" युवक बनी युवती ने व्यंग्य से कहा।
-"सवाल मेरे यक़ीन का नहीं है, सवाल ये है कि हमें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना है बेटी, तुम्हें बुज़ुर्गों की मान्यताओं के परंपरागत सम्मान का भी ख्याल रखना है। यही नहीं,बल्कि जब राज्य के भावी शासक के रूप में तुम्हारे नाम का ऐलान हो, तब भी तुम्हें नीचे, सिंहासन के चरणों में ही बैठना है। ऐसा नहीं है कि तुम्हारा रहस्य वहां किसी को पता चलेगा, किन्तु फिर भी अक्लमंदी इसी में है कि पुरानी मान्यता की क़द्र करते हुए अपने जीवन का बचाव किया जाये।"
-"ओह पिताजी, तो क्या मेरा पूरा जीवन झूठ पर ही टिकेगा ? मैं अपनी निर्दोष चचेरी छोटी बहन को धोखा दूँगी? मुझसे ये नहीं होगा, मुझे बख्शिये।" युवक की आवाज़ की मायूसी अब उसका मौलिक स्वर बन कर उभरने लगी थी।
-"क्या बकवास है? क्या मेरी जीवन भर की तपस्या का यही फल मुझे मिलेगा ? सारी उमर अपने दिमाग से योजना बनाते हुए मैंने ये सब किया, ताकि मैं अपने मरते हुए पिता के वचनों का पालन करते हुए अपने परिवार को भी एक दिन उनका उत्तराधिकारी सिद्ध कर सकूँ।"                

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

[3]

-"अगली सुबह पूरे नगर की प्रजा इस खबर से झूम उठी कि मेरे यहाँ पुत्र का जन्म हुआ है, जो आगे जाकर उनका राजा बनेगा। तुम्हें पालने के लिए तुम्हारी सगी मौसी को बुलाया गया ताकि इस रहस्य को किसी भी कीमत पर उजागर होने से रोका जा सके।"
युवक के वेश में खड़ी सुकुमार कन्या के माथे पर पसीना चुहचुहा आया। वह आँखों की पुतलियों को रोके तन्मयता से अपने पिता को सुन रही थी।
-"जब तुम दस साल की हुईं तब तुम्हारे तायाजी के यहाँ पुत्री का जन्म हुआ। मुझे शंका के साथ-साथ दुःख भी हुआ। मैं मनाता रहा कि किसी तरह बीमारी आदि में पड़कर इस कन्या का जीवन न बचे। पर मुझे निराशा ही हाथ लगी।  वह सुरक्षित रही और राज्य के राजमुकुट के प्रबल दावेदार के रूप में बढ़ती रही। पर मैं भी अपने अहंकार में चूर होकर आश्वस्त रहा कि पुत्र तो मेरे ही घर में है, जो बड़ा होकर राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा।  .... इसलिए मेरी बच्ची, मैंने न केवल तुम्हारा नाम ही राजकुमार रखा बल्कि तुम्हें मन की अंतिम परत से राजकुमार ही समझा। तुम्हें पढ़ाने के बहाने इतनी दूर भेज दिया गया।"
-"लेकिन पिताजी ..."
-"अब मेरा भाई, तुम्हारा ताया बूढ़ा हो रहा है और उस से राज्य के मसले नहीं सँभलते। अतः वह चाहता है कि तुम्हें अभी से अपने पास बुला ले और राज्य के भावी शासक के रूप में तुम उसके साथ कामकाज देखना शुरू करो।"
-"किन्तु ...पिताजी ..."
-"तुम्हारे सेवक तैयार हैं, और तुम्हें अपने सुनहरे भविष्य के लिए उनके साथ प्रस्थान करना है।"                      

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

[2]

और सुनो, उन्होंने ये भी कहा था कि यदि दोनों ही घरों में कोई पुत्र न होकर केवल पुत्रियां ही होती हैं तो तुम्हारे तायाजी की बेटी ही रानी बनेगी, बशर्ते वह काबिल हो। किन्तु यदि वह काबिल न हो तो फिर मेरी पुत्री को शासक बनाया जाये। यहाँ भी शर्त यही थी कि वह होशियार और समझदार हो।
-"लेकिन पिताजी, ये "क़ाबलियत" किस नज़र से आंके जाने की बात कही थी बाबासाहेब ने?"
-"नादान मत बनो बेटी, क़ाबलियत किसी की नज़र से नहीं होती, काबिल माने काबिल, बस ! अतः मैं और तुम्हारी माँ सारी उम्र बेटे के लिए मन्नतें मांगते रहे,पर हमारी प्रार्थना निष्फल गयी, हमारे यहाँ तुम्हारा जन्म हुआ।"ठाकुर ने लरज़ती आवाज़ में कहा।
-"आपको निराशा हुई होगी पिताजी?"
-"हाँ , मुझे निराशा हुई,मुझे लगा कि विधाता का दिया हुआ सौभाग्य का एक अवसर मुझसे छिन गया। हमारा सपना टूट गया। लेकिन मैंने आसानी से हार नहीं मानी, मैं लगातार कुछ करने के लिए सोचता रहा।"
-"क्या? क्या पिताजी??"
-"भाई के विवाह को भी पांच साल से ज़्यादा हो गए थे पर उसके यहाँ कोई औलाद नहीं हुई थी।तब मेरे मन ने मुझसे कहा, रुको, अभी हमने सब कुछ नहीं खोया है। मेरे दिमाग ने सोचना शुरू किया।"
कुछ देर की चुप्पी के बाद ठाकुर ने कहना जारी रखा-"तुम्हारा जन्म आधी रात में हुआ था। केवल एक दाई और छह दासियों को ही पता था कि तुम लड़की हो।  मैंने एक घंटे के भीतर ही सबको मौत के घाट उतार दिया।"
-"पिताजी !".... युवक की भरपूर चीख निकली।
ठाकुर लाल आँखों से किसी मायावी दैत्य से नज़र आ रहे थे।              
      

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

सुनो रे !

रात का समय था। जयपुर नगर के उस उस पुराने भव्य महल में ख़ामोशी का साम्राज्य था। साल बीतने को था। दूर महल के ऊँचे बुर्ज़ पर इकलौते झरोखे में रोशनी दिखाई देती थी। वहां पर एक गुप्त बैठक चल रही थी। बुजुर्ग किन्तु स्वस्थ ठाकुर कलात्मक कुर्सी पर विराजमान थे। वे मंथर पर गूंजती आवाज़ में कह रहे थे-
-"बेटी ... ?"
उनकी बात का जवाब एक सुन्दर सुकुमार युवक ने सिर झुका कर दिया।
-"कहिये पिताजी ?"
-"बेटी,अब समय आ गया है कि जिस रहस्य ने तुम्हें अब तक परेशान किये रखा,अब उसका पर्दाफ़ाश हो। मैं तुम्हारे जन्म से ही रखे गए इस राज़ को अब खोलना चाहता हूँ। मेरे बड़े भाई, तुम्हारे तायाजी,जैसा तुम्हें पता है कि इस राज्य के महाराजाधिराज हैं। हमारे पिता ने मरते समय कहा था कि यदि इनके कोई पुत्र नहीं हुआ तो राज्य का अगला उत्तराधिकारी मेरे परिवार से होगा, बशर्ते मेरा कोई पुत्र हो।"
-"लेकिन पिताजी,ये बात बाबा ने क्या सोच कर कह दी, क्या उन्हें तायाजी के पुत्र न होने का अंदेशा पहले से ही था?"
ठाकुर ने चौंक कर बेटी की आँखों में झाँका,फिर संयत होते हुए बोले-"ये एक अलग राज़ है जो सही वक़्त पर तुम पर जाहिर होगा।"
            

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युवक ने बचपन से अब तक की सारी कहानी युवराज को सुना डाली कि किस तरह युवक अपने पिता के साथ बचपन में युवराज के पिता की हवेली में आया करता था औ...